
जाने दो मन मोहन प्यारे सांझ से रात अब आती हैं
गोपी की इस भोली बातों पे,प्रभु को हँसी आती हैं|
बोले नंदनन्दन मुस्कराकर क्यों गोपी घबराती हैं
तेरे रूप में हमने भेजी गोपी तेरे घर जाती हैं ||1||
चकित भई गोपी की अखिया अश्रु जल छलकाती हैं
चरण पकड़ कर झुक गयी गोपी नहीं भेद वेह पाती हैं ||2||
छलक गए बस नयन कटोरे,प्रेम सुमन भर लाती हैं
भुजा में बाँध करें प्रभु अपना समर्पित वह हो जाती हैं ||3||
करुणामय ! तुम बडे दयालु इतना ही कह पाती हैं
'हरिदासी' तब आँख उघड गयी निज को घर में पाती हैं ||4||
क्या क्या कहे यह महिमा प्रभु की,हरिदासी शरमाती हैं
कृपा करो प्रभु कंठ लगा लो,दासी शरण में आती हैं ||5||
''जय श्री राधे कृष्णा ''
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