मन तेरे चरणों से लिपटा इंन्द्रियाँ बनीं दासी

मन तेरे चरणों से लिपटा इंन्द्रियाँ बनीं दासी



मन तेरे चरणों से लिपटा
इंन्द्रियाँ बनीं दासी
अँखियाँ हरिदर्शन की प्यासी |

बीत चुका ये जीवन मेरा ,
जो रहा अति विलासी |
अमावस की रात भी देखी ,
अब देखूँ पूरनमासी ||1||
.
जिधर देखूँ तू-ही-तू है ,
अदभुत तेरी झांकी |
जिन आँखों से देखूँ मैं वो ,
आँख है अविनाशी ||2||

''जय श्री राधे कृष्णा '


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