
मन को मेरे मोह गया तू साँवली सूरत सांवरिया रे
कानो में रस मिसरी घोले कान्हा तेरी बांसुरिया रे|
और न अब कुछ देखूँ मैं तो यह जग लागे बेगाना सा
चारो ओर दिखे बस तू ही कर गया मुझको बावरिया रे||1||
प्रेम में तेरे मैं मनमोहन भटकूँ ऐसे सुध बुध खोकर
तेरे एक दरस को जैसे व्याकुल ब्रज की छोहरिया रे ||2||
डूबी तेरे चाह में मोहन मैं कुछ ऐसे हे यदुनंदन
भूल के जैसे तन मन अपना डूबे जल में गागरिया रे||3||
होऊं मगन मैं हे मुरलीधर देख के तेरी लीलाओं को
और न अब कुछ दिल ये चाहे नाचे बनकर पामरिया रे ||4||
तेरा दर्शन नित दिन होवे तेरा ही श्रृंगार करूँ बस
बैठ निहारूं तुझको लाला झलती जाऊं चांवरिया रे ||5||
''जय श्री राधे कृष्णा ''
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