
जग में आनन्द अक्षय अचल संपदा,
नित्य देता है ,श्री कृष्ण:शरणं ममः ||1||
पांडवों की विजय क्यों हुई युद्ध में,
उसका कारण है ,श्री कृष्ण:शरणं ममः ||2||
द्रौपदी का सहारा यही एक था,
नित्य जपती थी ,श्री कृष्ण: शरणं ममः ||3||
ब्रज के गोपों का गोपीजनों का सदा,
एक आश्रय था ,श्री कृष्णः शरणं ममः ||4||
वल्लभाचार्य का विट्ठलाधीश का,
मूल साधन था ,श्री कृष्णः शरणं ममः ||5||
पुष्टीमार्गीय वैष्णव जनों के लिये,
प्राणजीवन है ,श्री कृष्णः शरणं ममः ||6||
लाभ लौकिक-अलौकिक विविध भांति के,
सबसे बढकर है ,श्री कृष्णः शरणं ममः ||7||
क्षीण हो जाते हैं पुण्य सब भांति के,
किंतु अक्षय है ,श्री कृष्णःशरणं ममः ||8||
''जय श्री राधे कृष्णा ''
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