
धुन- संसार है एक नदिया
तेरी याद मैं रोते हैं , जगते हैं ना सोते हैं
उल्फत में तेरी मोहन , दामन को भिगोते हैं || टेर ||
ये कैसी उल्फत है , कुछ समझ नहीं आवे
प्रियतम को मेरे मुझ पर , कोई तरस नहीं आवे
ये कैसी अवस्था है , क्या प्रीत के गोते हैं || १ ||
गर प्रीत है ये मोहन , ये प्रीत अजूबी है
प्रेमी को रुलाना ही , क्या प्रीत की खूबी है
हम प्रीत के मारे तो , जीते हैं न मरते हैं || २ ||
करुणा के सागर हो , करुणा तो दिखलाओ
हम हार गये मोहन , इतना तो न आजमाओ
" नन्दू " मिल ले प्यारे , अरमान सिसकते हैं || ३ ||
जयश्री राधे कृष्ण
श्री कृष्णाय समर्पणम्
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