
विषजलाप्ययाद व्यालराक्षसाद्
वर्षमारुताद वैद्युतानलात।
वृषमयात्मजाद् विश्वतोभया-
दृषभ ते वयं रक्षिता मुहुः॥3||
गोपिया कहती है प्रभो आप को अगर विरह अग्नि मे मारना ही था तो पहले ही मर जाने देते अरे कितने कितने असुर ,यमुना जी के विषैले जल से होने वाली मृत्यु अजगर के रुप मे आया अघासुर इन्द्र की वर्षा आँधी बिजली दावानल वृषभासुर व्योमासुर आदि राक्षसो से क्यो बचाया ।
न खलु गोपिकानन्दनो भवा -
नखिलदेहिनामन्तरात्मदृक्
विखनसार्थितो विश्वगुप्तये
सख उदेयिवान सात्वतां कुले ॥4||
गोपिया कहती है तुम केवल यशोदानन्दन ही नही हो , समस्त शरीरधारियों के हृदय मे रहने वाले उसके साक्षी हो ,अन्तर्यामी हो !हे प्रिये ! ब्रम्हा जी की प्रार्थना पर ही आप विश्व की रक्षा करने के लिये यदुवंश मे अवतीर्ण हुये हो ।
जय श्री राधे कृष्ण
श्री कृष्णाय समर्पणम्
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