
धुन- स्वरचित
मुट्ठी की रेत जाइयां समय सरक रही
चेत क्यूँ ना बैरी मनवा , बिजली कड़क रही || टेर ||
बारिशां में तूँ पतंग उड़ाव
उल्टा सीधा रे भाया पेंच लड़ाव
हाथ न आयो कछु , तृषणा भड़क रही || १ ||
कंचा सूँ खेल कर घणों मुस्कायो
हीरो लूटायो पण समझ ना पायो
हाथ ना आयो कछु , माया फड़क रही || २ ||
भजन भाव तन्नै कदे ना सुहायो
नाम खुमारी कदे चखी ना चखायो
" नन्दू " इब सोच सोच कर छाती धड़क रही || ३ ||
जय श्री राधे कृष्ण
श्री कृष्णाय समर्पणम्
0 Comments: