
यदि नाथ का नाम दयानिधि है तो दया भी करेंगे कभी न कभी,
दुखारी हरी दुखिया जन के दुःख क्लेश हरेंगे कभी न कभी ||
जिस अंग की शोभा सुहावनी है
जिस श्यामल रंग में मोहिनी है
उस रूप सुधा से सनेहियाँ के दृग प्याले भरेंगे ll1ll
जहाँ गीध निषाद का आदर है
जहाँ व्याधि अजामिल का घर है
वही वेश बना के उसी घर में जा ठहरेंगे ll2ll
करूणानिधि नाम सुनाया जिन्हें
चरणामृत पान कराया जिन्हें
सरकार अदालत में ये गवाह सभी गुजरेंगे ll3ll
हम द्वार पे आपके आ के पड़े
मुददत से इसी ज़िद पर है अड़े
अघ सिंधु तरे जा बड़े से बड़े तो ये बिन्दु तरेंगे ll4ll
जय श्री राधे कृष्ण
श्री कृष्णाय समर्पणम्
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