
क्या भरोसा है इस ज़िंदगी का,
साथ देती नहीं यह किसी का |
सांस रुक जाएगी चलते चलते,
शमा बुज जाएगी जलते जलते ,
दम निकल जायेगा रौशनी का ॥1||
हम रहे ना मोहोबत रहेगी,
दास्ताँ अपनी दुनिया कहेगी ,
नाम रह जाएगा आदमी का ॥2||
दुनिया है इक हकीकत पुरानी,
चलते रहना है उसकी रवानी ,
फर्ज पूरा करो बंदगी का ॥3||
जय श्री राधे कृष्ण
श्री कृष्णाय समर्पणम्
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