
धुन - स्वरचित
तुम्हारे दर पे आ पड़ा हूँ ,
दया की मुझ पर नज़र तो कर दो ||
कोई नहीं है इस जग में मेरा ,
एक सहारा बस प्रभु तेरा
भावों का गजरा लिए खड़ा हूँ ,
आ कर के इसको स्वीकार करलो || १ ||
तुम्हें मनाऊँ तुम्हें सुनाऊँ ,
रो रो के दाता तुम्हें रिझाऊँ
बिच भँवर में नाव फंसी है ,
आकर के इसको पार लगा दो || २ ||
तुम ना सुनोगे , किसको सुनाऊँ ,
मन की व्यथाएँ किसको बताऊँ
" काशी " भी तुझसे अरज गुजारे ,
आकर के सबकी बिगड़ी बना दो || ३ ||
जय श्री राधे कृष्ण
श्री कृष्णाय समर्पणम्
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