गोपी गीत  3

गोपी गीत 3






विरचिताभयं वृष्णिधुर्य ते
चरणमीयुषां संसृतेर्भयात्।
करसरोरुहं कान्त कामदं
शिरसि धेहि नः श्रीकरग्रहम्॥5||

अपने प्रेमियो की अभिलाषा पूर्ण करने वाले हे पुरुषोत्तम ! जो लोग जन्म मृत्यु रूप संसार के चक्कर से डरकर तुम्हारे चरणो कीशरण ग्रहण करते है उन्हे तुम्हारे करकमल अपनी छत्रछाया मे लेकर अभय कर देते है ।हमारे प्राण प्यारे !सबकी लालशा अभिलाषाओ को पूर्ण करने वाला वही करकमल जिससे तुमने लक्ष्मी जी का हाथ पकडा था हमारे सर पर रख दो  |

व्रजजनार्तिहन् वीर योषितां
निजजनस्मयध्वंसनस्मित।
भज सखे भवत्किङ्करीः स्म नो
जलरुहाननं चारु दर्शय ॥6||

व्रजवासियो के दुख को दूर करने वाले वीरशिरोमणि श्यामसुन्दर !तुम्हारी मन्द मन्द मुस्कान की एक उज्जवल रेखा ही तुम्हारे प्रेमीजनो के सारे मान मद को चूर चूर कर देने के लिये पर्याप्त है ।हमारे प्यारे सखा ! हमसे रूठो मत प्रेम करो ।हम तो तुम्हारी दासी हैं ।तुम्हारे चरणो पर निछावर है ।हम अबलाओ को अपना  परम सुन्दर साँवला मुख कमल दिखलाओ॥

जय श्री राधे कृष्ण
श्री कृष्णाय समर्पणम्



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