
तव कथामृतं तप्तजीवनं
कविभिरीडितं कल्पमषापहम्।
श्रवणमंगलं श्रीमदाततं
भुवि गृणन्ति ते भूरिदा जनाः॥9ll
गोपिया कहती है प्रभो ! तुम्हारी लीलाकथा भी अमृतस्वरुप है ।विरह से सताये हुये लोगो के लिये तो वह जीवन सर्वस्य ही है ।बडे बडे ज्ञानी महात्माओं -भक्त कवियो ने उसका गान किया है ।वह सारे पाप ताप तो मिटाती ही है साथ ही सुनने मात्र से मंगल अर्थात परम कल्याण का दान भी करती है ।वह परम सुन्दर ,परम मधुर और बहुत विस्तृत भी है ।जो तुम्हारी उस लीला कथा का गान करते है ,वास्तव मे भूलोक मे वे ही सबसे बडे दाता है ।
प्रहसितं प्रिय प्रेमवीक्षणं
विहरणं च ते ध्यानमंगलम्।
रहसि संविदो या हृदिस्पृशः
कुहक नो मनः क्षोभयन्ति हि ॥10||
गोपिया कहती है प्रभो !एक दिन वह था ,जब तुम्हारी प्रेमभरी हँसी और चितवन तथा तुम्हारी तरह तरह की क्रीडाओ का ध्यान करके हम सब आनन्द मे मग्न हो जाया करती थी ।उसका ध्यान भी परम मंगलदायक है ,उसके बाद तुम मिले ।तुमने एकान्त मे हृदयस्पर्शी ठिठोलियाँ की प्रेम की बाते कही ।हमारे कपटी मित्र ! अब वे सब बाते याद आकर हमारे मन को छुब्ध कर देती हैं।
जय श्री राधे कृष्ण
श्री कृष्णाय समर्पणम्
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