गोपी गीत   7

गोपी गीत 7



प्रणतकामदं पद्मजार्चितं
धरणिमण्डनं ध्येयमापदि।
चरणपंकजं शन्तमं च ते
रमण नः स्तनेष्वर्पयाधिहन्।।13 ||

गोपिया कहती है प्रियतम् !एकमात्र तुम्ही हमारे सारे दुखो को मिटाने वाले हो ।तुम्हारे चरणकमल शरणागत भक्तो की समस्त अभिलाषाओं को पूर्ण करने वाले है ।स्वयं लक्ष्मी जी उनकी सेवा करती है और पृथ्वी के तो वे भूषण ही हैं।आपत्ति के समय एकमात्र उन्ही का चिन्तन करना उचित है , जिससे सारी आपत्तिया कट जाती है ।कुन्जविहारी ! तुम अपने वे परमकल्याणस्वरुप चरणकमल हमारे वक्षःस्थल पर रखकर हृदय की व्यथा शान्त कर दो ॥

सुरतवर्धनं शोकनाशनं
स्वरितवेणुना सुष्ठु चुम्बितम्।
इतररागविस्मारणं नृणां
वितर वीर नस्तेऽधरामृतम्॥14ll



गोपियाँ कहती है प्रभो वीरशिरोमणि ! तुम्हारा अधरामृत मिलन के सुख को -आकांक्षा को बढाने वाला है ।वह विरह जन्य समस्त शोक संताप को नष्ट कर देता है ।यह गाने वाली बाँसुरी भलीभाँति उसे चूमती रहती है ।जिन्होने एक बार उसे पी लिया ,उन लोगो को फिर दूसरों और दूसरो की आसक्तियों का स्मरण भी नही होता ।हमारे बीर ! अपना वही अधरामृत हमे वितरण करो ,पिलाओ ।।


जय श्री राधे कृष्ण
श्री कृष्णाय समर्पणम्

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