गोपी गीत श्लोक 19

गोपी गीत श्लोक 19



यत्ते सुजातचरणाम्बुरूहं स्तनेषु
भीताः शनैः प्रिय दधीमहि कर्कशेषु।
तेनाटवीमटसि तद् व्यतथे न किंस्वित्
कूर्पादिभिर्भ्रमति धीर्भवदायुषां नः॥19||

गोपिया कहती है प्रभो ! तुम्हारे चरण कमल से भी सुकुमार है ।उन्हे हम अपने कठोर स्तनो पर भी डरते डरते बहुत धीरे से रखती है कि कहीं उन्हे चोट न लग जाय ।उन्ही चरणों से तुम रात्रि के समय घोर जंगल मे छिपे छिपे भटक रहे हो !क्या कंकड पत्थर आदि की चोट लगने से उनमें पीडा नही होती ? हमें तो इसकी सम्भावना मात्र से ही चक्कर आ रहा है ।हम अचेत होती जा रही है ।श्री कृष्ण !श्याम सुन्दर ! प्राणनाथ !हमारा जीवन तुम्हारे लिये है ।हम तुम्हारे लिये जी रही है , हम तुम्हारी है ।

जय श्री राधे कृष्ण
श्री कृष्णाय समर्पणम्



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