भ्रमर गीत

भ्रमर गीत

भ्रमर गीत 


तं वीक्ष्य कृष्णानुचरं व्रजस्त्रियः
प्रलम्बबाहुं नवकंजलोचनम्।
पीताम्बरं पुष्करमालिनं लस-
न्मुखारविन्दं मणिमृष्टकुण्डलम्॥1||

श्री शुकदेव जी महराज कहते है परीक्षित ! जब गोपियों ने देखा कि जो वृज मे आयें है इनकी आकृति वेषभूषा आदि सब कुछ कन्हैया से मिलता जुलता है यहाँ तक कि घुटनो तक लम्बी लम्बी भुजाये है नूतन कमलदल के समान नेत्र है शरीर पर पीताम्बर धारण किये है गले मे कमल के फूलो की माला है , कानो मे मणिजटित कुण्डल झलक रहे है और मुखारविन्द अत्यन्त प्रफुल्लित है ।

   

शुचिस्मिताः कोऽयमपीच्यदर्शनः
कुतश्च कस्याच्युतवेषभूषणः।
इति स्म सर्वा परिवव्ररुत्सुका-
स्तमुत्तमश्लोकपदाम्बुजाश्रयम्॥2||


जब गोपियो ने यह वेश भूसा देखी तो सब मन मे विचार करने लगी यह तो बिल्कुल मेरे प्यारे जैसा वेष बनाया है।आखिर यह है कौन और इसने श्रीकृष्ण जैसा वेश क्यू बनाया है यह सोचकर सभी गोपियाँ भगवान कृष्ण के परमसखा उद्धव जी को घेरकर चारो ओर से खडी हो गयी ।।
सज्जनो धन्य है वृजवासी एवं गोपिया जिनके मुख से श्रीकृष्ण के अतिरिक्त शब्द नही निकलता जो श्रीकृष्ण के अतिरिक्त किसी से बात नही करती ।सज्जनो उद्धव जी को भगवान ने अपना वस्त्र माला रथ आदि सब कुछ सिर्फ इसलिये दिया कि बिना इसके कोई भी व्रज मे तुमसे बात नही करेगा ।सिर्फ इस जिज्ञासा से गोपियो ने उद्धव से बोलना चाहा कि तुमने उस प्राणे का रूप क्यो बनाया है।

जय श्री राधे कृष्ण

श्री कृष्णाय समर्पणम्

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