
धुन- वो दिल कहाँ से लाऊँ
अपनी शरण में ले लो , कैलाश के निवासी
दर्शन हमें भी दे दो , अँखियाँ दरश की प्यासी ||
भक्ति तेरी ना जानू , ना भाव का पता है
लेकिन मेरे ह्रदय में , तेरा प्रेम तो बसा है
करनी पड़ेगी हम पर , भोले महर ज़रा सी || १ ||
गंगा जटा से बहती , मस्तक पे चन्दा साजे
सर्पो का हार पहने , देखूँ तूँ कैसा लागे
ओ नीलकण्ठ वाले , ओ काशी धान वासी || २ ||
देवों के देव तुमको , हर देवी देव ध्यावे
कालों के काल फिर भी , सब पर दया लुटावे
चौखट पे तेरी भोले , " नन्दू " ये आँख लागी || ३ ||
जय श्री राधे कृष्ण
श्री कृष्णाय समर्पणम्
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