
धुन- धन घड़ी धन भाग्य हमारा
भोले तेरा रूप निराला , पहने तूँ सर्पों की माला
बहे जटा से जल धारा ||
ओढ़ लेई मृग की छाला , अंग भभूत रमाई है
आक धतूरा खाकर के , धूनी अलख जगाई है
मस्तक ऊपर चंदा साजे , हाथ में डमरू डम डम बाजे || १ ||
ओघड़ दानी भूतेश्वर , शमशानों का वासी है
भगतों का है रखवारा , भूतों का तूँ साथी है
द्वार पे तेरे नन्दी बैठा , हाथ तेरे त्रिशूल अनूठा || २ ||
भिछुक रूप बनाया है , पर तूँ जग का स्वामी है
कण कण की सब तूँ जाने , तूँ तो अन्तर्यामी है
" हर्ष " तेरा ये ढंग निराला , पीता भर भर कर प्याला है || ३ ||
जय श्री राधे कृष्ण
श्री कृष्णाय समर्पणम्
0 Comments: