शिव वन्दना

शिव वन्दना



धुन- धन घड़ी धन भाग्य हमारा




भोले तेरा रूप निराला , पहने तूँ सर्पों की माला

बहे जटा से जल धारा ||




ओढ़ लेई मृग की छाला , अंग भभूत रमाई है
आक धतूरा खाकर के , धूनी अलख जगाई है
मस्तक ऊपर चंदा साजे , हाथ में डमरू डम डम बाजे || १ ||




ओघड़ दानी भूतेश्वर , शमशानों का वासी है
भगतों का है रखवारा , भूतों का तूँ साथी है
द्वार पे तेरे नन्दी बैठा , हाथ तेरे त्रिशूल अनूठा || २ ||




भिछुक रूप बनाया है , पर तूँ जग का स्वामी है
कण कण की सब तूँ जाने , तूँ तो अन्तर्यामी है
" हर्ष " तेरा ये ढंग निराला , पीता भर भर कर प्याला है || ३ ||





जय श्री राधे कृष्ण

 श्री कृष्णाय समर्पणम्



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