यही हरि भक्त  कहते हैं, यही सद्ग्रन्थ गाते हैं ।कि

यही हरि भक्त  कहते हैं, यही सद्ग्रन्थ गाते हैं ।कि






यही हरि भक्त  कहते हैं, यही सद्ग्रन्थ गाते हैं ।

कि जाने कौन से गुण पर, दयानिधि रीझ जाते हैं ।




नहीं स्वीकार करते हैं, निमंत्रण नृप दुर्योधन का ।

विदुर के घर पहुंचकर, भोग छिलकों का लगाते हैं ।




न आये मधुपुरी से गोपियों की, दुख कथा सुनकर ।

द्रुपदजी की दशा पर, द्वारका से दौड़े आते हैं ।




न रोये बन गमन में, श्री पिता की वेदनाओं पर ।

उठा कर गीध को निज गोद में आंसू बहाते हैं ।




कठिनता से चरण धोकर, मिले कुछ 'बिन्दु' विधि हर को ।

वो चरणोदक स्वयं केवट के, घर जाकर लुटाते हैं ।


जय श्री राधे कृष्ण
 श्री कृष्णाय समर्पणम्



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