
क्या करूँ मैं ब्रज की बातें,
ब्रज की बात रुलाती है
वह विहरण ब्रजवासी बनिता,
वन वन रुदन मचाती है|
मुझको रोका हाथ बढ़ाया
इन करील के काँटों ने
मन ही मन में मोद हिलाया,
माखन के इन मटकों ने ||1||
मुरली की धुन सुनना चाहा,
यमुना जी के घाटों ने
सूनी सूनी कुञ्ज गली भी,
श्याम श्याम चिल्लाती है ||2||
जय श्री राधे कृष्ण
श्री कृष्णाय समर्पणम्
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