
टेर सुनो ब्रजराज दुलारे ।
दीन मलीन हीन सब गुनते,
आय परयो हौं द्वार तिहारे ||1||
काम क्रोध अरु कपट मोह मद,
सोई जाने निज प्रीतम प्यारे ||2||
भ्रमत रहों संग इन विषयनके,
तुव पदकमल न मैं उर धारे ||3||
कौन कुकर्म किये नहिं मैंने,
जो गये भूल सो लिए उधारे ||4||
ऐसी खेप भरी रचि पचिकै,
चकित भये लखिकै बनिजारे ||5||
अब तौ एक बार कहौ हँसिके,
आजहि ते तुम भये हमारे ||6||
यहि कृपा ते 'नारायन' की,
बेगी लगैगी नाव किनारे ||7||
जय श्री राधे कृष्ण
श्री कृष्णाय समर्पणम्
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