गोविन्द....इस मस्त-ए-नज़र ने छेड़ा है अब दर-ए-जिगर का क्या होगा जो

गोविन्द....इस मस्त-ए-नज़र ने छेड़ा है अब दर-ए-जिगर का क्या होगा जो



गोविन्द....



इस मस्त-ए-नज़र ने छेड़ा है 

अब दर-ए-जिगर का क्या होगा
जो जख्म बना हो मरहम से
 उस जख्म का मरहम क्या होगा ।।1||


पर्दा तो अभी सरका ही नहीं
 बैचैन है दिल फिर क्यों इतना
जब मिलकर निगाहें बिछुड़ेगी 
उस वक्त का आलम क्या होगा ||2||




ये दिल की लगी कोई खेल नहीं 
इस आग का बुझना मुश्किल है
जो आग लगाई आंसुओं ने 
उस आग का हशर क्या होगा ।।3||





आजा ओ गोपाल अब तो
इंतजार खत्म कब होगा ।।


 जय श्री राधे कृष्ण

       श्री कृष्णाय समर्पणम्



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