
ग्वालिन मति पकड़ै मेरी बैयाँ,
दूख रही मेरी नरम कलैया।।
मैं नहिं तेरो माखन खायो।
अपने घर के धोके आयो।
मटुकी तें नहिं हाथ लगायो।
आज छोड़ दे हा हा खाऊँ,
लेऊँ तेरी बलैया।।1||
खोल किवड़िया तू गई पानी।
भूल गई फिर क्यों पछतानी।
मोते कर रही एेंचातानी।
झूठो नाम लगावै मेरो,
तेरे घर में घुसी बिलैया।।2||
आज छोड़ दे सौगन्ध खाऊँ।
पुनि नहीं तेरे घर में आऊँ।
नित तेरी गागर उठवाऊँ।
वेग छोड़ दे देर है रही,
बोल रह्यो बल भैया।।3||
जय श्री राधे कृष्ण
श्री कृष्णाय समर्पणम्
0 Comments: