
श्रीराधारानी-चरन बंदौं बारम्बार।
जिनके कृपा-कटाच्छ तें रींझें नंदकुमार।।
जिन के पद-रज-परस तें स्याम होयँ बेभान।
बंदौं तिन पद-रज-कननि मधुर रसनि के खान ||1||
जिन के दरसन हेतु नित बिकल रहत घनस्याम।
तिन चरननि में बसै मन मेरौ आठौं जाम ||2||
जिन पद-पंकज पर मधुप मोहन-दृग मँडरात।
तिन की नित झाँकी करन मेरौ मन ललचात ||3||
' रा ' अच्छर कौं सुनत ही मोहन होत बिभोर।
बसै निरंतर नाम सो ' राधा ' नित मन मोर ||4||
जय श्री राधे कृष्ण
श्री कृष्णाय समर्पणम्
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