इतीदृक स्वलीलाभिरानन्दकुण्डे,स्वघोषं निमज्जन्तमाख्यापयन्तम्तदीयेशितज्ञेषु भक्तैर्जितत्वं,पुन: प्रेमतस्तं शतावृत्ति वन्दे ॥3॥मैं उन्ही दामोदर

इतीदृक स्वलीलाभिरानन्दकुण्डे,स्वघोषं निमज्जन्तमाख्यापयन्तम्तदीयेशितज्ञेषु भक्तैर्जितत्वं,पुन: प्रेमतस्तं शतावृत्ति वन्दे ॥3॥मैं उन्ही दामोदर





इतीदृक स्वलीलाभिरानन्दकुण्डे,

स्वघोषं निमज्जन्तमाख्यापयन्तम्
तदीयेशितज्ञेषु भक्तैर्जितत्वं,
पुन: प्रेमतस्तं शतावृत्ति वन्दे ॥3॥


मैं उन्ही दामोदर भगवान को फिर भी प्रेमपूर्वक सैंकड़ो बार प्रणाम करता हूँ,जो इस प्रकार 
की बाल लीलाओ के द्वारा अपने समस्त व्रज को,आनन्द रूप सरोवर में गोता लगवा रहे
 है;एवं अपने ऐश्वर्य को जाननेवाले ज्ञानियो के निकट ,भक्तो के द्वारा 
अपने पराजय के भाव को प्रकाशित करते है। 




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वरं देव मोक्षं न मोक्षीवधिँ
वा न चान्यं वृणेऽहं वरेशादपीह।
इदन्ते वपुर्नाथ गोपालबालं सदा मे
मनस्या विरास्ताँ किमन्यै ॥4॥

 हे देव!आप सब प्रकार के दान देने में समर्थ है;तो भी मैं आपसे मोक्ष की पराकाष्ठा स्वरूप 
बैकुंठ लोक,अथवा और वरणीय दूसरी किसी वस्तु की प्रार्थना नही करता हूँ। मैं तो केवल य
ही प्रार्थना करता हूँ कि हे नाथ!मेरे हृदय में तो आपका यह बालगोपाल रूप 
श्री विग्रह सदैव प्रकट होता रहे। इससे भिन्न दूसरे वरदानों से मुझे क्या प्रयोजन?


जय श्री राधे कृष्ण



       श्री कृष्णाय समर्पणम्

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