
दुल्हन बनी श्री वृंदा रानी
दूल्हा मोहन श्याम
गोप सखा सहि नन्द चले
करि बारात प्रस्थान
मात पिता की लाड़ली
मन कृष्णा को दीन्ह
चित्त में मेरे बस गयो
यह गोकुल को बींद ॥1॥
घूँघट के इस ओट में
चले नैन से नैन
मन ही मन मुसकाय लियो
सुंदर बैन सुबैन ॥2॥
एक झलक दिखलाय के
ठगयो चित्त चित्तचोर
चिंतामणि चित्त बस गयो
यह व्रज को सिरमौर ॥3॥
माला डालीं गले में
चित्त हुआ बेचैन
चरण दासी मैं बनूँ
नित नव होवे प्रेम ॥4 ॥
गाँठ ज़ोरि प्रभु चल दिए
श्री नटवर घनश्याम
वृंदा को ले जाय पहुँचे
श्री वृंदावन धाम॥5 ॥
तुलसी मस्तक धरि लिए
हर्शे शालिग्राम
वैष्णव जन धारण किये
कण्ठ भयो अभिराम ॥6 ॥
बिन तुलसी भावे नहि
चाहे सकल कोटि रसधान
एक तुलसीदल पणतहि
भावें कृपानिधान ॥7 ॥
हुलसि हुलसि हिय कह रहीं
तुलसी बारम्बार
जनम जनम मोहि दीज़ियो
तुलसीदल अवतार॥8 ॥
मस्तक मे नित मैं धरूँ
बनू प्रभू श्रंगार
वृंदावन की वन्दिता
हिय हरषे प्रबल अपार ॥9 ॥
जोणी वृंदा श्याम की
नित नावहिं सब शीश
कर ज़ोरि स्तुति करहिं
देहु हमें आशीष ॥10 ॥
मंगलमय श्री वृंदारानी
मंगलपूरन श्याम
सबको मंगल होत है
जो जपे श्रीदाश्याम ॥ 11 ||
जय श्री राधे कृष्ण
श्री कृष्णाय समर्पणम्
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