
बंसी नहीं बजाना माधव बंसी नहीं बजाना।
हाथ जोड़ हम विनती करते हमे न और सताना॥
बंसी धुन सुनते ही माधव मेरा सुध बुध खोता,
हाथ पांव पथराते मेरे काम काज नहीं होता।
तन टूटा मन जग से रूठा खोजूँ कहाँ ठिकाना॥1||
सावन के कजरारे बादल जब अम्बर में छावें,
जब पूनम का चांद देख राधाजी ध्यान लगावें।
तू दरशन देता हम सब को करता नहीं बहाना॥2||
तू नित अंग संग है मेरे हरदम रहता घेरे,
हमको वृज रज तुलसी दल में तेरी छटा लखे रे।
घट अन्तर हमरे तू बैठा हमे और क्या पाना॥3||
जय श्री राधे कृष्ण
श्री कृष्णाय समर्पणम्
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