
मेरे जिय ऐसी आन बनी
बिन गोपाल काहू नही जानू
सुन मोसों सजनी
कहा कांच के सन्ग्रह कीने
हरी जो अमोल मणी ||1||
विष सुमेरु कछु काज न आवे
अमृत एक कणी
मन वच कर्म मोहे आन न भावे||2||
अब मेरो श्याम धनी
सूरदास स्वामी के कारण
तजी जात अपनी||3||
जय श्री राधे कृष्ण
श्री कृष्णाय समर्पणम्
0 Comments: