
मन बस गया नन्द किशोर,
अब जाना नही कहीँ और,
बसा लो बृन्दावन में, बसा लो|
सोंप दिया अब जीवन तोहे,
राखो जिस विधि रखना होये,
तेरे दर पे पड़ी हूँ सब छोड़,
अब जाना नही कहीं और ||1||
चाकर बनकर सेवा करुँगी,
मधुकर मांग कलेवा करूँगी,
तेरा दरस करुँगी उठ भौर,
अब जाना नही कहीं और ||2||
अरज मेरी मंजूर ये करना,
बृन्दावन से दूर न करना,
कहुँ मधुप हथि- हथि जोड़,
अब जाना नहीं कहीं और ||3||
जय श्री राधे कृष्ण
श्री कृष्णाय समर्पणम्
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