
कृष्ण नाम की नैया में मैं हो के चला सवार
मुझको जाना है भव सागर से पार |
जीवन अर्पित कर डाला है मैंने कृष्ण चरण में,
छोड़ के सारे बन्धन मैं बैठा कृष्ण चरण में,
जीते जी न छोड़ूगा मैं कृष्ण तुम्हारा द्वार ll1ll
कृष्ण किनारा कृष्ण समुन्दर कृष्ण ही तारणहार,
मन में आस लगा बैठा हूँ कृष्ण तुम्हारे द्वार,
मुझको जाना है भव सागर से पार ll2ll
कृष्ण कृष्ण रटते रटते मैं अपना नाम भी भुला,
झूल रहा हूँ मस्ती में मैं श्याम नाम का झूला,
कृष्न नाम की मस्ती में महके जीवन की हर स्वांस ll3ll
जय श्री राधे कृष्ण
श्री कृष्णाय समर्पणम्
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