
बताता आज मैं तुमको, मुझे क्योंकर रिझाओ तुम |
सुनो मुझको रिझाने के, सरल रस्ते बताऊँ मैं |
रिझाया था मुझे भिलनी ने जूठे चार बेरों से
न जूठे, खट्टे-मीठे पर, कभी ममता लगाऊँ मैं || 1||
रिझाना जो मुझे चाहो, विदुर से पूछ लो जाकर
सुदामा की झपट गठरी, खड़ा चावल चबाऊँ मैं ||2||
न रीझूँ गान-गप्पों से, न रीझूँ तान-टप्पों से
बहा दो प्रेम के आँसू, चला बस आप आऊँ मैं ||3||
न रीझूँ फूल से फल से, न गंगा जी के ही जल से
हृदय में भेद है जब तक, कहो कैसे समाऊँ मैं ||4||
न रीझूँ लेप-चन्दन से, न दीपक के जलाने से
जो दिल में आग सच्ची हो, मुग्ध मैं खुद ही हो जाऊँ ||5||
न पत्थर का मुझे समझो, नरम हूँ मोम से बढ़कर
गरम आहें जो छोड़ो तुम, पिघल बस आप जाऊँ मैं ||6||
न रीझूँ पूजाघर से मैं, न घंटी के बजाने से
हृदय-स्वर से पुकारो तुम, तुरत दौड़ा चला आऊँ ||7||
जय श्री राधे कृष्ण
श्री कृष्णाय समर्पणम्
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