मैं क्या जानू प्रेम क्या मोहना मैं तो अधम पातकी |मन
मैं क्या जानू प्रेम क्या मोहना
मैं तो अधम पातकी |
मन में नहीं कोई तीव्र वेदना
सेवा नही कोई साध की ||
नहीं कोई गुण ,अवगुण की ढेरी
तुम बिन कौन सुधि ले मेरी
नाम नही मुख से हरि न बोलूं
होते जगत अपराध ही ||1||
नहीं कोई त्याग न कोई समर्पण
हूँ अधम नहीं सर्वस्व अर्पण
कब देखूं श्याम नैनों के दर्पण
मन में भरे विषाद ही ||2||
तुम चाहो तो अपना लो
सेवा में अपनी ही लगा लो
मेरे संग भी नेह लगा लो
संगति मिले कभी साध की ||3||
जय श्री राधे कृष्ण
श्री कृष्णाय समर्पणम्
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