कान्हा बिराजो हृदय भवन में तुम बिन और न हो
कान्हा बिराजो हृदय भवन में
तुम बिन और न हो कुछ मन में
अपना जान मुझे स्वीकारो ।
भ्रम भूलों से बेगि उबारो ।
मोह जनित संकट सब टारो ।
उलझा हूँ मैं भव बंधन में ||1||
तुम जानो सब अंतरयामी ।
तुम बिन कुछ भाये ना स्वामी ।
प्रेम बेल उर अंतर जामी ।
तुम ही सार वस्तु जीवन में||2||
निज चरणों में तनिक ठौर दो ।
चाहे स्वामी कुछ न और दो ।
केवल अपनी कृपा कोर दो ।
कृष्णामृत भर दो जीवन में ||3||
जय श्री राधे कृष्ण
श्री कृष्णाय समर्पणम्
0 Comments: