बहे सात्संग का दरिया नहा लो जिसका जी चाहे
बहे सत्संग का दरिया नहा लो जिसका जी चाहे
करो हिम्मत जरा तुम भी लगा लो जिसका जी चाहे |
हजारो रंग है इसमें एक से एक बढ़ आला
किसी का दर्द नहीं कुछ भी उठा लो जिसका जी चाहे ll1ll
मिटे सांसर का चक्कर लगे नहीं मौत की टक्कर
करे है पार भव सागर करा लो जिसका जी चाहे ll2ll
बना रे चोर से साधु मिटा ले दुष्टता मन की
कटे जड़ मूल पापो का लगा लो जिसका जी चाहे ll3ll
बना दे रंक से राजा बड़े राजो के महाराजा
श्रेष्ठ से श्रेष्ठ अपने को बना लो जिसका जी चाहे ll4 ll
करत यह मुक्ति की विधि मिटे सन्ताप दुःख सारे
रंगे हरि प्रेम के रंग में बना लो जिसका जी चाहे ll5ll
जय श्री राधे कृष्ण
श्री कृष्णाय समर्पणम्
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