मैं गिरधर के घर जाऊँ।गिरधर म्हांरो सांचो प्रीतम देखत रूप

मैं गिरधर के घर जाऊँ।गिरधर म्हांरो सांचो प्रीतम देखत रूप










मैं गिरधर के घर जाऊँ।
गिरधर म्हांरो सांचो प्रीतम देखत रूप लुभाऊँ।।



रैण पड़ै तबही उठ जाऊँ भोर भये उठि आऊँ।
रैन दिना वाके संग खेलूं ज्यूं त्यूं ताहि रिझाऊँ।।




जो पहिरावै सोई पहिरूं जो दे सोई खाऊँ।
मेरी उणकी प्रीति पुराणी उण बिन पल न रहाऊँ।




जहाँ बैठावें तितही बैठूं बेचै तो बिक जाऊँ।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर बार बार बलि जाऊँ।।









जय श्री राधे कृष्ण



       श्री कृष्णाय समर्पणम्

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