
निष्काम सेवा बंदगी....
निष्काम सेवा बन्दगी दिल से करता जा प्राणी।
न जाने कब हो जायेगी संतों की मेहरबानी।।
सतगुरु का कहना मान ले गफलत को छोड़ दे।
जन्मों से बिछुड़ी सुरति को मालिक से जोड़ ले।।
गुरुमति के साँचे में ढाल ले अपनी सारी ज़िन्दगानी।।1||
यह भोग तुझे चौरासी की गलियाँ भटकाएँगे।
फिर गर्भ योनि में डालकर उलटा लटकाएंगे।।
तेरे पाप ताप मिट जाएंगे सुन ले सन्तों की बाणी||2||
यह सुन्दर बाग बगीचे और यह कंचन की काया।
क्या पाया जो जीवन में विश्राम नहीं पाया।।
तन होगा खाक की ढेरी राजा होया रानी ||3||
ओरों को दुःख देने वाले सुख तू नहीं पायेगा।
निष्काम कर्म करने वाला बन्धन में ना आयेगा।।
इतना है सार धर्म का इतनी है कर्म कहानी ||4||
दुर्लभ नर तन तो भव से तरने का साज है।
मंज़िल को पायेगा चढ़ा जो नाम जहाज़ है।।
बिन सुमिरण स्वांस न आए हो जाए ना नादानी||5||
जय श्री राधे कृष्ण
श्री कृष्णाय समर्पणम्
0 Comments: