
तर्ज़-सावन का महिना
पित्तरों को क्यूँ भूला, उन्हें पूजे जन जन है
पित्तरों की किरपा से, पलता हर जीवन है
पित्तरों ने छत्तर छाया, तुमपे लुटाई है
तुमको सुरक्षा दी है, विपदा मिटाई है
उनकी ही दया से, खिलता घर आँगन है
पित्तरों की महिमा क्या, तुमने न जानी
पित्तरों की शक्ति तो, सबने है मानी
गम की बदली छँटती, बरसे सुख सावन है
पित्तरों को भूलने से, काम ना चलेगा
कहता _*"रवि*_ के कोई, काम ना फलेगा
पित्तरों का ही वन्दन, हाँ सुमिरन पावन है
*रविन्द्र केजरीवाल " रवि "
जय श्री राधे कृष्ण
श्री कृष्णाय समर्पणम्
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