
मधुवन की लताओं में घनश्याम तुम्हें देखूँ।
सेवा कुञ्ज की लताओं में घनश्याम तुम्हें देखूं।
घनघोर घटाओं में घनश्याम तुम्हें देखूं।
यमुना का किनारा हो, चंचल सी धारा हो।
वहाँ बन्सी बजाते हुए, घनश्याम तुम्हें देखूँ ||1||
तिरछे हों खड़े नटवर,तिरछा हो मुकुट सिर पर,
वहाँ गौएँ चराते हुए, घनश्याम तुम्हें देखूँ ||2||
घर घर में हो गिरधारी, वन वन में हो बनवारी
वहाँ माखन चुराते हुए, घनश्याम तुम्हें देखूँ||3||
मेरे सपनों में हो गोपाल, मेरे नयनों हों नंदलाल,
जीवन के सहारे श्याम, हर समय तुम्हे देखूं||4||
सखियों का मंडल हो, वृषभानु दुलारी हो,
वहाँ रास रचाते हुए, घनश्याम तुम्हें देखूँ||5||
जय श्री राधे कृष्ण
श्री कृष्णाय समर्पणम्
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