अधमों के नाथ उबारना तुम्हें याद हो कि न याद

अधमों के नाथ उबारना तुम्हें याद हो कि न याद








अधमों के नाथ उबारना तुम्हें याद हो कि न याद हो।

मद खल जनों का उतारना तुम्हें याद हो कि न याद हो॥





प्रह्लाद जब मरने लगा, खंजर पै सिर धरने लगा।
उस दिन का खंम्भ बिदारना तुम्हें याद हो कि न याद हो ||1||





धृतराष्ट्र के दरबार में दुखी द्रौपदी की पुकार में।
साड़ी के थान संवारना तुम्हें याद हो कि न याद हो||2||





सुरराज ने जो किया प्रलय, ब्रजधाम बसने के समय।
गिरवर नखों पर धारना तुम्हें याद हो कि न याद हो | |3||





हम ‘बिन्दु’ जिनके निराश हो, केवल तुम्हारी आस हो।
उनकी दशाएँ सुधारना तुम्हें याद हो कि न याद हो ||4||


जय श्री राधे कृष्ण



       श्री कृष्णाय समर्पणम्

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