
मुखड़ा क्या देखो दर्पण म. दया धर्म नही दिल मे.मुखड़ा
मुखड़ा क्या देखो दर्पण म.
दया धर्म नही दिल मे.
मुखड़ा क्या देखो दर्पण मे
कागज की तो नाव बनायी
तिरति छोडी जल मे .
धर्मी धर्मी पार उतर गये
बाकी डूबे पल मे ||1||
जब गल फूल रहै डाली मे.
वास( सुगंघ ) रहे फूलन मे
एक दिन ऐसी हो जायेगी.
खाद उडेगी. तन मे .||2||
सुआ चंदन अबीर अगरजा
शोभे गौरे तन मे
घन जोबन डूंगर का पानी
ढल जायेगा क्षण मे ||3||
नदियाँ गहरी नाव पूरानी
उतर चले सुगन मे
गुरू मुख होय सो पार उतरे
नूगरा रोवे बन मे||4||
थोड़ी थोड़ी माया जोडी
सूरत रहे निज घन मे
दस दरवाजे घेर लिये
रह गयी मन की मन मे ||5||
बगिया मन सवारे
रेत जमी तन मे
कहत कबीर सुनो भाई साधू
ले क्या लड़ रहे मन मे ||6||
जै श्री राधे कृष्ण
🌺
श्री कृष्णायसमर्पणं
Previous Post
धन है हमारो सखी प्यारी राधा रानी के चरणछोड़ सब
0 Comments: