
राधा जू मधुर मधुर मुस्कायें|
मंद-मंद मंजुल मणि मरकत
मंगल स्मित-मोद मनायें।
झपटि बासुँरी कर गहि लीन्हीं
अधर धरति अतिहिं शरमायें||1||
छलकत छटा छहर छवि साजे
अंग-अंग आभा छहराये।
साँवर कृष्ण, उजारौ हियरा
साँवरिया के मन बसि, भायें ||2||
नयन नयन सौं मनहिं मन झूमें
राग राग प्रतिराग जगायें।
स्वाँस समीकरण मलय सुगन्धित
रस-रसना से रस सरसाये ||3||
अम्बुज अरूण अलौकिक शोभा
तन-मन अंतर्ज्योति जगाये।
चंचल चितवन श्यामसुंदर की
नव नव प्रतिपल नव बन आयें ||4||
जै श्री राधे कृष्ण
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श्री कृष्णायसमर्पणं
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