
लाडली के दरबार में फिर से, आया-आया नवल बसंत ।
खिलती कलियां मचले भौंरे, मुस्काया है ऋतुराज कंत ।।
छलक पड़े घट आशाओं के, इन्द्रधनुषी सपने हो गए हैं ।
पुलकित मन बौराया सखि रे, सारे पराए अपने हो गए हैं ।।
नव-पल्लव-पर निकल पड़े, उड़ने लगा है प्रीत-पराग ।
फूलों का गदराया है यौवन, उलझी हैं लताएं तन-अनुराग ।।
दुख-सुख बतियाते हैं तरुवर, है हवा बसंती मन भावन ।
प्रेम बदरिया रिमझिम बरसे, मानो आया भटका सावन ।।
नेह-नीर रस भीगा आलम,.पीत चुनरिया लहरायी है ।
नव-उमंग तरंगें उठती, चहुंओर बहार छायी है ।।
राग मल्हार छेड़ते पंछी, गूंज उठा मण्डल सारा ।
कर किल्लोल मनाएं उत्सव, सब जीव-जगत मंगलकारा ।।
बालक-मन फागुन रंग छाया, हुआ मुदित मयूरा नाच उठा ।
मौज-दीप की ज्योति बसंती, तन-मन-जीवन सब नाच उठा ।।
जै श्री राधे कृष्ण
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श्री कृष्णायसमर्पणं
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