
गोकुल की हर गली में, मथुरा की हर गली में
कान्हा को ढूंढता हूँ, दुनियाँ की हर गली में|
गोकुल गया तो सोचा, माखन चुराता होगा
या फिर कदम के निचे, बंशी बजाता होगा
गुजरी की हर गली में, ग्वालन की हर गली में
कान्हा को ढूंढता हूँ दुनियाँ की हर गली में ||1||
शायद किसी नारि का, चीर बढाता होगा
या फिर विष के प्याले को, अमृत बनाता होगा
मीरां की हर गली में, भक्तों की हर गली में
कान्हा को ढूंढता हूँ दुनियाँ की हर गली में ||2||
जै श्री राधे कृष्ण
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श्री कृष्णायसमर्पणं
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