
क्या वह स्वाभाव पहला सरकार अब नहीं हैदीनों के वास्ते
क्या वह स्वाभाव पहला सरकार अब नहीं है
दीनों के वास्ते क्या दरबार अब नहीं है
या तो दयालु मेरी दृग दीनता नहीं है
या दीनों की तुम्हे भी दरकार अब नहीं है ll11ll
पाते थे जिस हृदय से आश्रय अनाथ लाखों
क्या वह हृदय दया का भंडार अब नहीं है ll2ll
जिस उदारता से सुदामा त्रैलोक्य पा गया था
क्या उस उदारता में कुछ सार अब नहीं है ll3ll
दौड़े थे द्वारिका से जिस पर अधीर होकर
उस अश्रु बिंदु से भी क्या प्यार अब नही है ।।4।।
जै श्री राधे कृष्ण
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श्री कृष्णायसमर्पणं
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तेरे चरणों में हो जीवन की शाम,
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