घनश्याम तू रस बरसाता जा
आशाओं की है भरी डाली, बस एक ही कली खिलाता जा
मेरी जीवन बगिया सूख चली , घनश्याम तू रस बरसाता जा ।
मेरे प्यारे तू रस बरसाता जा |
हे कन्हैया
मैं सींच सींच कर हार गयी नैनो के खारे पानी से
मैं विनती कर कर हार गयी इस उल्टी सीधी वाणी से
मैं पूछ पूछ कर हार गयी तेरी राह चलते प्राणी से
मै खोज खोज कर हार गयी कर्मो की अकथ कहानी से
है कहाँ छुपा , तू प्यारे सखे , इसका कुछ पता , बताता जा ।।1।।
हे गोपाल
मन के वासी होकर भी तुम क्यों नैनो से दूर रहे
हम वक़्त के हाथों है साजन , लाचार रहे मजबूर रहे,
है भला भरोसा जीवन की बहती धारा का प्यारे क्या
आरम्भ कहाँ अवसान कहाँ मझधार की बात विचारे क्या
स्वार्थी मतलबी दगाबाज संसार के रहूँ सहारे क्या
क्या हरि तुम्हारा मैं कुछ भी नही बोलो कहाँ जाये पुकारे क्या
मोहन मैं तेरा किंकर हूँ तू अपना बिरथ निभाता जा ।।2।।
भगवान
भवसागर घोर गहन , कैसे इससे छुटकारा हो
काम क्रोध मद लोभ मोह कैसे इनसे निस्तारा हो
आंखों पर छाया मोह पटल , कैसे दीदार तुम्हारा हो
पर हो एक क्षण में उद्धार मेरा , तेरा प्यार भरा जो इशारा हो
साथी तू प्यार का सागर है , लहरों में मुझे डुबाता जा ।।3।।
आओ घनश्याम
आओ तो प्यारे एक बार ,बस एक बार ,
क्षण क्षण जीवन का मुस्काये
झंकार उठे मन की वीणा , हे हरि , गीतों की स्वर लहरी छाये
मन मस्त बेखुदी झूम उठूँ , मोहन आये प्रियतम आये,
नैनो से पी लूँ रूप सुधा , पर प्यास सतत बढ़ती जाये
धर कर अधरों पे बासुंरियाँ , तू अपना रंग जमाता जा ।।4 ।।
मुकुंद हरि जी
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जै श्री राधे कृष्ण
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श्री कृष्णायसमर्पणं
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