
कहा करौ बैकुंठहि जाय,जहाँ नहि नन्द जसोदा गोपी, जहाँ नहीं ग्वाल-बाल
कहा करौ बैकुंठहि जाय,
जहाँ नहि नन्द जसोदा गोपी,
जहाँ नहीं ग्वाल-बाल और गाय ||1||
जहाँ न जल जमुना कौ निर्मल,
और नहीं कदमनि की छाय ||2||
'परमानन्द' प्रभु चतुर ग्वालिनी,
बज-रज तजि मेरी जाइ बलाय||3||
जै श्री राधे कृष्ण
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श्री कृष्णायसमर्पणं
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