
कोउ विधि मोहन का बन जाऊँ ।
मोहन मेरा मैं मोहन का, प्रेम से गुण नित गाऊँ ।
प्रेम नगर में उनके बस कर, उनसे दिल बहलाऊँ ।
प्रेम पंथ की गली -गली में, चलत चलत थक जाऊँ ।
मारग सरल बतादो आ कर, पग-पग पर घबराऊँ ।
उनके संग अंग सब राचूँ, निशदिन नेह बढ़ाऊँ ।
प्रकट दृष्टि में आवत नाहीं, कैसे करके पाऊँ ।
दासदीन दया कर आजा मोहन, भव में मैं भरमाऊँ ।
नाव पुरानी भवसागर से , कैसे पार लगाऊँ ।
जै श्री राधे कृष्ण
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श्री कृष्णायसमर्पणं
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