
आली म्हाँने लागे वृन्दावन नीको ।
घर घर तुलसी ठाकुर पूजा ,
दरसण गोविन्दजी को ||1||
निरमल नीर बहे जमुना को ,
भोजन दूध दही को||2||
रतन सिंघासण आप विराज्या ,
मुकट धर्यो तुलसी को ||3||
कुंजन कुंजन फिरूँ साँवरा ,
सबद सुणत मुरली को||4||
मीराँ रे प्रभु गिरधर नागर,
भजन बिना नर फीको ||5||
जै श्री राधे कृष्ण
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श्री कृष्णायसमर्पणं
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