
यूँ सुध लीजो नवल किशोरी।
वृन्दावन की ललित लतन में
गिनती कीजो मोरी ,नवल किशोरी
यूँ सुध लीजो नवल किशोरी।
कबहुँ झूरा डार झूलियो
रसिक रँगीली जोरी ,
नवल किशोरी।।1।।
कबहुँ कबहुँ बलि सींचत रहियो
लाड़ भरी दृग कोरी,
नवल किशोरी ।।2।।
निशी बासर दें खत न अघाउँ
इतनो जाचत भोरी ,
नवल किशोरी।।3।।
जै श्री राधे कृष्ण
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श्री कृष्णायसमर्पणं
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