अरी चितचोर लीह्यो है कन्हाई कन्हाई कन्हाईतन मन की सुध बिसराई
अरी चितचोर लीह्यो है कन्हाई
कन्हाई कन्हाई
तन मन की सुध बिसराई ।
मेरो बिसर गयो घर अंगना रे
सजनी अब चैन पड़े नाय
मन साँवरी सूरत भाई
तन मन की सुध बिसराई ।।1।।
मैं प्रेम दीवानी काहना की
मेरे मन प्रीत भयी वाकी
ओ मोहन से प्रीत लगाई
तन मन की सुध बिसराई ।।2।।
हो रसिया तेरी है जाऊँगी
रस बन के दर्शन पाऊँगी
मोहे लै चल संग निवाई
तन मन की सुध बिसराई ।।3।।
सखी प्रेम पंथ मन भायो है
मन प्रिय कांत जू समायो है
मैं तो भूल गयी चतुराई
तन मन की सुध बिसराई ।।4।।
जै श्री राधे कृष्ण
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श्री कृष्णायसमर्पणं
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