
होरी खेलत नंदलाल बृज में,
होरी खेलत नंदलाल।
ग्वाल बाल संग रास रचाए,
नटखट नन्द गोपाल॥
बाजत ढोलक झांझ मजीरा,
गावत सब मिल आज कबीर।
नाचत दे दे ताल,
होरी खेलत नंदलाल||1||
भर भर मारे रंग पिचकारी,
रंग गए बृज के नर नारी।
उड़त अबीर गुलाल,
होरी खेलत नंदलाल||2||
ऐसी होरी खेली कन्हाई,
यमुना तट पर धूम मचाई।
रास रचे नंदलाल,
होरी खेलत नंदलाल ||3||
जै श्री राधे कृष्ण
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श्री कृष्णायसमर्पणं
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